जागेश्वर धाम किस नदी के किनारे स्थित है? जानिए इस प्राचीन तीर्थ की पौराणिक महिमा

जागेश्वर धाम किस नदी के किनारे स्थित है? जानिए इस प्राचीन तीर्थ की पौराणिक महिमा

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बहुत से लोग जानना चाहते हैं कि जागेश्वर धाम किस नदी के किनारे स्थित है? तो आइए, इस लेख में विस्तार से समझते हैं जागेश्वर धाम की भौगोलिक स्थिति, ऐतिहासिक महत्ता और पौराणिक कथा।

जागेश्वर धाम कहाँ स्थित है?

जागेश्वर धाम उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा ज़िले में स्थित है। यह स्थान समुद्र तल से लगभग 1870 मीटर की ऊँचाई पर घने देवदार और चीड़ के जंगलों के बीच बसा हुआ है। यहाँ की वादियाँ और प्राकृतिक वातावरण मन को अद्भुत शांति का अनुभव कराते हैं।

किस नदी के किनारे है जागेश्वर धाम?

जागेश्वर धाम मंदिर समूह जाता गंगा नदी के किनारे स्थित है।

यह नदी हिमालय की गोद से निकलकर इस क्षेत्र को पवित्र बनाती है। कहते हैं कि इस नदी का जल स्वयं में इतना पवित्र है कि इसमें स्नान करने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और भक्त नई ऊर्जा और पवित्रता का अनुभव करते हैं।

जाता गंगा नदी केवल जल का स्रोत नहीं है, बल्कि यह यहाँ के धार्मिक और आध्यात्मिक जीवन का भी अभिन्न हिस्सा है। मंदिरों के चारों ओर से बहती यह नदी जागेश्वर धाम की दिव्यता को और बढ़ा देती है।

जागेश्वर धाम का परिचय

जागेश्वर धाम को भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। हालाँकि कुछ पौराणिक मतभेद हैं, लेकिन स्थानीय मान्यता और कई शास्त्रों के अनुसार यहाँ स्वयं भगवान शिव ज्योतिर्लिंग रूप में विराजमान हैं।

यहाँ लगभग 124 मंदिरों का समूह है, जिनमें बड़े और छोटे शिव मंदिर शामिल हैं। इन मंदिरों की स्थापत्य कला कुमाऊँ क्षेत्र की प्राचीन शिल्पकला का अद्भुत उदाहरण है।

मुख्य मंदिरों में—

  • महामृत्युंजय मंदिर

  • जागनाथ (जागेश्वर) मंदिर

  • दंडेश्वर मंदिर

  • पुस्टी देवी मंदिर

  • चंडिका मंदिर

विशेष रूप से महामृत्युंजय मंदिर को अत्यधिक शक्तिशाली और पूजनीय माना जाता है।

पौराणिक महिमा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, जागेश्वर धाम वही स्थान है जहाँ देवताओं ने भगवान शिव की तपस्या की थी। कहा जाता है कि यहाँ भगवान शिव ने स्वयं को “जागेश्वर” अर्थात जगत के ईश्वर के रूप में प्रकट किया।

  • एक कथा के अनुसार, यहाँ पर सप्तऋषियों ने घोर तपस्या की और भगवान शिव उनके सामने प्रकट हुए।

  • दूसरी मान्यता यह है कि यहाँ भगवान शिव ने पार्वती जी को विवाह का प्रस्ताव दिया था।

  • स्कंद पुराण और लिंग पुराण में भी जागेश्वर धाम का उल्लेख मिलता है, जिससे इसकी पौराणिक महत्ता और बढ़ जाती है।

स्थापत्य और वास्तुकला

जागेश्वर धाम के मंदिर कटी हुई पत्थरों से बने हुए हैं। इन पर की गई नक्काशी और मूर्तियाँ अद्भुत हैं। यहाँ की मूर्तियों में गुप्तकाल और कत्युरी राजाओं के समय की झलक स्पष्ट दिखाई देती है।

मंदिरों के शिखर उत्तर भारतीय नागर शैली में बने हैं। सबसे ऊँचे मंदिर का शिखर दूर से ही दिखाई देता है और भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करता है।

धार्मिक महत्व

  • जागेश्वर धाम को हिंदू धर्म में मोक्षदायी स्थल माना जाता है।

  • यहाँ हर साल हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।

  • विशेषकर श्रावण मास और शिवरात्रि पर यहाँ का वातावरण अत्यंत दिव्य और भक्तिमय हो जाता है।

  • यहाँ की जाता गंगा नदी के पवित्र जल में स्नान कर भक्त मंदिर में पूजा-अर्चना करते हैं।

पर्यटन की दृष्टि से महत्व

जागेश्वर धाम न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि पर्यटन की दृष्टि से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है।

  • प्रकृति प्रेमियों के लिए यहाँ का हरियाली से घिरा वातावरण स्वर्ग के समान प्रतीत होता है।

  • इतिहास और संस्कृति के शोधकर्ताओं के लिए यहाँ की वास्तुकला अद्भुत अध्ययन का विषय है।

  • साथ ही यह स्थान ट्रैकिंग और फोटोग्राफी के लिए भी मशहूर है।

कैसे पहुँचे जागेश्वर धाम?

  • हवाई मार्ग: निकटतम हवाई अड्डा पंतनगर एयरपोर्ट है, जो लगभग 150 किलोमीटर दूर है।

  • रेल मार्ग: निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम है, जहाँ से जागेश्वर धाम लगभग 125 किलोमीटर की दूरी पर है।

  • सड़क मार्ग: अल्मोड़ा से जागेश्वर धाम की दूरी लगभग 36 किलोमीटर है, जहाँ आसानी से टैक्सी और बस उपलब्ध रहती हैं।

निष्कर्ष

जागेश्वर धाम केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि आस्था, इतिहास और संस्कृति का संगम है। जाता गंगा नदी के किनारे बसा यह पावन धाम भक्तों को न केवल आध्यात्मिक शांति देता है, बल्कि यह स्थान हमें भारतीय संस्कृति और परंपरा की गहराई का भी अनुभव कराता है।

यदि आप कभी उत्तराखंड की यात्रा पर जाएँ तो जागेश्वर धाम अवश्य जाएँ और यहाँ की दिव्यता को अनुभव करें।

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